कुछ बातें यूहीं…


किताबों के बीच बैठे-बैठे,

ईश्वर की मानवीय रचनाओं को पढ़ते-पढ़ते,

हमारी दिनें और रातें कुछ यूँही बीत जाया करती है,

कभी खाते तो फिर कभी पढ़ते,फिर कभी हम सो जाते हैं ।

परीक्षा के समय ऐसा हाल सबका होता है,

जैसे मानों जिंदगी में कुछ और हो ही नहीं।

पुस्तकालय में बैठे-बैठे जब बाहर देखा,

तो आज नजारा कुछ अलग लग रहा था,

लगा  जैसे  धरती से धूल ऊपर उठने लगी,

और वहाँ ऊपर आसमान से ,बूँदे बरसने लगी ।

पृथ्वी और आकाश के बीच जंग छिड़ गया हो जैसे,

दिन भर किताबों के पथ से हट के चलो कुछ तो नया देखा।

खिड़की के उस तरफ से भीगी दुनिया को देख के,

बहुत सी यादें मन में जग गई,

एक वक्त था जब हम भी भींगते थे,

बारिश के उन बूँदों के साथ नाचते थे,

किसी अपने के साथ चाय-पकोड़े खाते थे…

जिंदगी तो आज कल सिर्फ मोटे-मोटे किताबों में डूब गई।

दूर उस वृक्ष पर बैठी चिड़िया की आवाज आज मधुर थी,

गीली मिट्टी की खुशबू  मदहोश कर रही थी,

यही तो है वो पल इंसान कभी कवि बनके,

अपने मन की बात आप से करता है       DSC04115

वरना किताबों के बोझ तले ये जिंदगी वीरान सी लगता है ।

-अंशुमान                                          

Published by Dr Ansuman Kar, MBBS, MD

👨‍⚕️Doctor by profession Writer ✍🏻by passion Odia by birth Indian in thought n Expression...🇮🇳

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